दोस्तों कहानिया सुनना किसको पसंद नही है, मई भी जब छोटा था तब कहानिया सुने बिना एक दिन भी सो नही पाता था. मुझे मेरी दादी कई बार Dhruva Tara की कहानी सुनाया करती थी. आज हम उसी ध्रुव तारा की कहानी को जानेगे.
Dhruva Tara Kahani
ब्रम्हा जी के पुत्र मनु और उनके पुत्र रजा उतान्पाद थे. राजा की दो रानिया थी, एक रानी का नाम सुनीति और दूसरी रानी का नाम सुरुचि था. सुनीति बड़ी रानी थी और सुरुचि छोटी रानी थी. राजा बड़ी रानी से बहुत ज्यादा प्रेम करते थे, साथ ही सुरुचि पर भी उनका प्रेम बहुत था.
रानी सुनीति के पुत्र का नाम ध्रुव था और रानी सुरुचि की पुत्र का नाम उत्तम था. राजा उतान्पाद का ध्यान रानी सुरुचि की तरफ बहुत ज्याता था क्युकी वह दिखने में काफी सुन्दर थी. लेकिन रानी सुरुचि अपनी सुर्न्दार्ता पर काफी घमंड करती थी. और उनका स्वाभाव भी थोडा अलग था.
बड़ी रानी सुनीति का स्वाभाव बहुत ही प्रेमळ था. साथ ही वह बहुत समजदार और शांत थी. रजा का सुरुचि की तरफ अधिक प्रेम देखते हुवे रानी सुनीति बहुत दुखी रहती थी, इसीलिए अपना मन बिताने के लिए वह अपना ज्यादा समय पूजा करने में लगती थी.
एक दिन रानी सुनीति के पुत्र ध्रुव अपने पिता की गोद में खेल रहे थे तभी वह सुरुचि रानी पहुच गयी. राजा की गोद में ध्रुव को देखकर रानी सुरुचि को गुस्सा आ गया और उसने ध्रुव को राजा की गोद से निचे उतार दिया और कहा की राजा की गोद और उनके सिंहासन पर सिर्फ मेरे पुत्र उत्तम का हि हक़ है. ये सुनकर ध्रुव को बहुत बुरा लगा.
ध्रुव वहा से रोते हुवे निकला और आपने माँ के पाच पंहुचा. ध्रुव को रोते हुवे देखकर माँ रानी सुरुचि बहुत चिंतित हो गयी और उन्हें ध्रुव से क्या हुवा यह पूछा, ध्रुव ने उन्हें सबकुछ बताया इसे सुनकर रानी सुनीति के आँखों में भी आसू आ गए. और उन्होंने ध्रुव से कहा की भगवान् की सच्ची आराधना करने से उसे सिंहासन और पिता दोनों मिल जायेगे.
माँ की बात मानकर ध्रुव भगवान् की प्रार्थना करने के लिए अपने महल से जंगलो की तरफ निकल पड़े. छोटो से ध्रुव को जंगलो की तरफ देखकर नारद मुनि ने उन्हें देख लिया और नारण ने उन्हें रोका और पूछा की तुम जंगलो की तरफ क्यों जा रहे हो. ध्रुव ने कहा की वह भगवान् की आराधना करने ज्या रहे है, नारद ने उन्हें बहुत समजाया और उन्हें राजमहल की तरफ वापस भेजने की बहुत कोशिश की, मगर ध्रुव ने उनकी एक न सुनी.
ध्रुव के निर्णय के कारण नारद ने उन्हें “ॐ नमो भगवतो वासुदेवाय” इस मंत्र का जाप करने कहा. ध्रुव जंगल में पहुंचकर जाप करने लगे. तभी नारद ने महल में पहुचकर राजा उतान्पाद को यह बताया. राजा नारद की बात सुनकर बहुत चिंतित हो गए और ध्रुव को वापस लाने का निर्णय ले लिया. तभी नारद ने कहा की ध्रुव अब्ब ध्यान में मग्न हो चुके है जो की अब वापस नही आ सकते.
उधर ध्रुव बहुत ही कठोर परिश्रम से प्रार्थना करने लगे. कई दिन और कई महीने बीतने के बाद भी वह प्रार्थना कर रहे थे, उनसे प्रसन्न होक भगवान् हरी ने उन्हें अपने दर्शन दिए. ध्रुव की तपश्या से वह बहुत खुश हुवे और उन्हें वरदान दे दिया.
उन्होंने कहा की तुम्हे राजसुख मिलेगा, साथ ही तुम्हारा नाम और तुम्हारी भक्ति हमेशा के लिए जानी जायेगी, यह कहकर भगवान् ने उन्हें राजमहल की तरफ भेज दिया. राजमहल वापस आने से रानी सुनीति और राजा बहुत खुश हो गए और उन्हें अपना पूरा राज्य सौप दिया.
भगवान् हरी के वरदान से भक्त ध्रुव का नाम अमर हो गया और आज भी सभी लोग उन्हें आसमान में सबसे चमकने वाला Dhruva Tara (pole star) के नाम से जानते है.
ध्रुव तारा, जिसका बायर नाम “अल्फ़ा उर्साए माइनोरिस” है, ध्रुवमत्स्य तारामंडल का सब से रोशन तारा है। यह पृथ्वी से दिखने वाले तारों में से ४५वां सब से रोशन तारा भी है। dhruva tara पृथ्वी से लगभग ४३४ प्रकाश वर्ष की दूरी पर है।
Conclusion:-
Dhruva Tara Kahani in Hindi इससे हमे यह सिख मिलती है की अगर कोई भी काम परिश्रम और लगन से किया जाए तो वह काम पूरा हो ज्याता है.
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FAQs Dhruva Tara
Q1. ध्रुव तारा कैसे पहचाने?
Ans:- इसे श्रेणी का सबसे रोशन तारा माना ज्याता है या फिर इसे महादानव तारा भी कहा ज्याता है. दो ऋषियों की सीधी रेखा में उतार की तरफ जो सबसे चकता हुवा तारा नजर आता है उसे Dhruva tara कहते है. ध्रुव तारा (Dhruva Tara) यह सूर्य से भी सबसे ज्यादा बड़ा होता है, और सूरज से भी ज्यादा इसकी रोशनी होती है.
Q2. ध्रुव तारा कब दिखता है?
Ans:- Dhruv tara का २६००० साल का पूरा एक चक्र होता है, यह धरती से ध्रुव निकलते हुए चमकते निकल पड़ता है. जब २६००० वर्ष पूर्ण होते है तब यह तारा दिखता है. ध्रुव तारे की आसपास की चमक बहुत कम होती है इसके कारण वह ज्यादा चमकता है.
Q3. ध्रुव तारा कब दिखाई देगा?
Ans:- 26000 वर्ष पूर्ण होने के बाद ध्रुव तारा फिरसे दिखाई देगा.
Q4. ध्रुव तारा क्यों स्थिर प्रतीत होता है?
Ans:- जैसे की महान वैद्यानिक ने कहा था की पृथ्वी अपनी धुरी पश्चिम से पूर्व की और परिक्रमा करती है, उसीप्रकार सभी तारे पश्चिम से पूर्व परिक्रमा करते है. इसीलिए ध्रुव तारा स्तित नही होता है.
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